पुरातन पुनीत परिमल काशी पर हिंदी कविता: बुला रहा काशी बनारस Bula Raha Kashi Banaras

भक्त औऱ भगवान के बीच हमें अनेको पाठ वं घटित घटनाओं के विषय में सुनने को मिलते हैं, जिनमें हर समय हर अलग अलग प्रकार की प्रसंग रहती हैं .लेकिन आज मैं देवो के देव महादेव और एक बालक पर हिंदी कविताएं बुला रहा काशी बनारस Bula Raha Kashi Banaras प्रस्तुत कर रहे हैं, जो काशी जाता हैं और महादेव को पुनः आने का वचन दे आता हैं, परन्तु अचानक घटित घटनाओं के वजह से नही जा पाता। वैसे में एक बालक अपने आराध्य से क्या कहता है. इस कविता के माध्यम से जानिए। 

बुला रहा काशी बनारस Bula Raha Kashi Banaras :हिंदी कविता, पुरातन पुनीत परिमल काशी पर



बुला रहा काशी बनारस कविता Hindi kavita on Bula raha hai Kashi banaras

बुला रहा काशी बनारस

हुई जो भूल सो गया मैं वहां

काल के मुंह में गया मैं समाये

मन विचलित,बेजान हुई शरीर

आत्मा कुचली ,रोम रोम बिलखता

मकसद बिखरे टूटे सब सपने जिसे सजोया था मैं!

हुआ अकेला कैद हुई जिंदगी सब अपने

वीरान हृदय लक्ष्यहीन जीवन समेट

जाने कौन सी भूल हुई हमसे

जो दिए सजा तुम चले छोड़ अकेला

पड़ा अकेला तब मैं था रोया यहां

मैं लाख रोका फिर भी रोक न पाया आंसू!!

तेरी रहमतों की फिर याद मुझे आयी

जो कर आया था वचन जो महादेव तुझसे

पुनः आऊंगा पुरातन पुनीत परिमल काशी

अप्रितम अविरल अडिग गलियों के बनारस

पावन पवित्र गंगा घाट के किनारे

लगाऊंगा डुबकी गंगा में अर्पित कर आऊंगा!

जल बेलपत्र काशी विश्वनाथ महादेव को

काशी रक्षक कालभैरव से ले आज्ञा

चढ़ा के भांग लगा के तिलक

प्रातः मित्रो संघ बैठ निहारूँगा

निर्विघ्न साधुओं की निर्मल स्नान

जो जटाओं से पूर्ण भभूतो से परिपूर्ण!!

गंगा में लगाती चिड़ियों संघ डुबकी

फिर कुल्हड़ की चाय के चुस्कियों के साथ

लस्सी वं जलेबी की मिठास चखुगा

गली घाट ठंडई लेहर में

पान की गिलोरियो का स्वाद चखते

काशी की भूल भुलैया गलियों से होते!

वेद-पुराण के मंत्रों से गूंजते

बीते दौर की जिंदा लाश की परछाईया को देखते

हरिचन्द्र-मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओ को देखता

आँख अपनी वं चाह काशी मुकम्मल बेहर की

जहां की हैं हर घाट की ठाठ निराली

तट पर लहरो संग गुनगुनाती शाम को देखता!!

फिर अस्सी-दशस्वमेघ की गंगा आरती देखता

जहां वैराग्य विशिष्ट विमल काशी में अन्तरलीन हो जाता

हे देवो के देव महादेव अब कर न विलम्बे

काशी विश्वनाथ बाबा मोहे दरस कराओ

नैना तरस रहे मेरे तेरे दर्शन को बाबा

अब तो कोई चमत्कार दिखाओ!

शंकर शिव भोले उमापति महादेव,

तारणहार परमेश्वर विश्वरुप महादेव

तुम्हीं हो दयासिन्धु दीन बन्धु त्रिपुरारी

मुझपे मेरी तकदीर पर कृपा बरसाओ

न अमृत सही कोई औषधि लगाओ

मैं हाथ जोड़ विनती करू तुम्हारी!!

कोई तो दया दिखाओ बाबा विश्वनाथ

तेरी मया तू ही जाने,जो जाने उसके अंतकरण

लौकिकता लुप्त हुई तन से लगी प्रेम लगन से

पाप किया जो फल मिला

किया निराकार अब स्वीकार मुझे

इस अंतःकलह दुःख दरिद्र को दूर भगा!

अद्भुत आत्मिक आनंद अनुपम से मिला

मन हो रहे हैं बड़े चंचल,अब तो बुला महादेव

क्योंकि लगी हैं फिर वही प्यास

बुला रहा हैं काशी बनारस

हे चन्द्रशेखर,काशी विश्वनाथ शिवशम्भु!!

By- ठाकुर आशुतोष सिंह

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Conclusion:- कविता बुला रहा काशी बनारस जो भगवान शिव के प्रिय नगरी काशी पर आधारित हैं. हमारे इस कविता की पंक्ति आपको कैसा लगा, क्या यह Bula Raha Kashi Banaras Hindi Poems से आपने अभी तक क्या सीखा यदि यह आपके जीवन के  लिए पर्याप्त है और अगर है तो आप हमें अपने विचार कमेंट कर बताएं।हम आपके हर एक प्रश्न का उत्तर देने के लिए तैयार है। औऱ आगे ऐसे ही हिंदी कवितायें, भक्ति कविताएं, महादेव पर कविता, प्रेम प्रसंग पर कविता, वसन्त ऋतु पर कविताएं पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट को subscribe करें!

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