Mahabharta Suryaputra Karna Par Kvita; सूर्यपुत्र महादानी कर्ण पर कविता:-

Poem On Mahabharta In Hindi:- आज हम आपके लिए महाभारत के एक काफी अच्छे प्रषंग वीर धनुषधारी कर्ण पर हिंदी में कविता लेकर आये हैं . वह कर्ण जिन्हें दानवीर, धनुषधारी, महान पराक्रमी, कुँती जेयष्ट, कौन्तेय, राधेय,धर्मज्ञ आदि नामों से जाना जाता है. महादानी कर्ण का संपूर्ण जीवन संघर्ष, महान वीरता, वीरता, दक्ष धनुधारी,मित्रता से भरा है. वे राज परिवार में जन्म लेने के बाद भी वे राजसुख शिक्षा से वंचित रहे. यहां तक कि वे समाज के ताने बाने सुनते हुय पले बढ़े. परन्तु मित्रता के दृष्टि से अपने कर्तव्य पर खरा उतरने वाले धर्मज्ञ हुए। तो आइए जानते हैं धनुर्धर kunti putra karna pr kavita-

Mahabharta Suryaputra Karna Par Kvita; सूर्यपुत्र महादानी कर्ण पर कविता:-


Karna Par hindi poem : कर्ण पर कविता हिंदी मे

कथा हैं यह महादानी कर्ण की

जो जन्म होते माँ से दूर हुआ

जिसका था वह अधिकारी

उनसब से वंचित हुआ

सारथी राधेय के घर पला

राजसुख से दूर होकर भी बढ़ा

कर्म कार्य धनुषबाण का जिद्द कर

परशुराम ज्ञान को जीवन को आधार बनाया

सूर्यपुत्र होकर भी लोगों का अहंकार सहा

नही मानी हार तब वह वीर कर्ण कहलाया

अपने सामर्थ्य के बल पर ललकारा

औऱ दे डाली श्रेष्ठ धनुधर की चुनौती

फिर भी वह सूत पुत्र कहलाया

जहां उसे दुर्योधन ने अपना मित्र बनाया

वं अंग प्रदेश का नरेश बनाया

मित्र संकट में पड़ द्रोपदी का अपमान किया

रुदन-में बेबस द्रोपदी तब दिया क्रंदन श्राप

अस्ताचलगामी श्रेष्ट धनुधर सूर्यपुत्र..कर्ण

भुगतना होगा इसका तुमको परिमाण

फिर एक दिन ऐसा हुआ

जुआ के खेल में पांडव को वनवास हुआ

जिसके उपरांत हुआ युद्ध का एलान

कुरुक्षेत्र मैदान में धर्मयुद्ध होने से पूर्व

श्रीकृष्ण ने दी चेतवानी

हे कुंती पुत्र कर्ण अभिमानी

बात मानो यह तुम हो वीर विद्वानी

छोड़ो तुम दुर्योधन का साथ

कैसो करोगे भला अपने अनुजों पर वार

ले ले तुम सिहांसन का अधिकार

मत करो ये युद्ध हैं ये महाविनाशी

तब सूर्यपुत्र कर्ण ने जोर जोर से बोला

क्या मैं तोड़ दु उन मित्रवचनों को

जिसने मुझे कभी अपनाया था

रंक से उठा हमें राजा बनाया

मेरे मान सम्मान के लिए खुद को भुनाया

उसे ठुकरा मैं इन्हें अपनाऊ कैसे

जिन्हों ने जन्म देते तिरस्कार किया

हे वासुदेव पुत्र मधुसूदन

एक नम्र विनय है आपसे हमारी

मेरी यह जन्मकथा रहस्य रखिये

अनुज धर्मराज युधिष्ठिर से मत कहिए

जैसे सम्भव हो इसे छिपा रखिये

युधिष्ठिर इसे जान यदि पाएँगे

तो धर्मराज सिंहासन को ठुकराएँगे

हस्तिनापुर साम्राज्य न कभी स्वयं लेंगे

सारी राजपाट संपत्ति मुझे दे देंगे

जो मैं भी कभी ना उसे रख पाऊँगा

मित्र दुर्योधन को सब दे जाऊँगा

पांडव वंचित रह जाएँगे

दुख से न छूट वे पाएँगे

करे न हमारा मित्रता का अपमान

बस जो जन्म दिया हे मधुसूदन

उनसे एक बार भेंट कराओ

मेरे अंतःकलह सूत पुत्र का दाग मिटाओ

मन के उतपन्न सवालों का जवाब दिलाओ

जहां नियति ने यह स्वीकार किया

कुंती से पासवर्ड से कैसे

मिलान किया गया

अपने ही पुत्रो से अन्य पुत्रों के लिए जीवन दान मांगा

तब वीर कर्ण ने अस्ताचलगामी सूर्य को ले सौगन्ध

पांच पुत्रो जीवित होने का दिया वचन

और जब शेष थे युद्ध के दिन

तब श्री कृष्ण ने चले थे एक चाल

जहां इंद्र को भेज मांगे थे कवच कुंडल

तो वही दान धर्म निभाने को

दे दिए कवच कुंडल सब दान

मित्रता निभाने को कर्ण पहुंच गए मौत के द्वार

फिर हुआ धर्मयुद्ध महाभारत का शंखनाद

जहां कुरुक्षेत्र के भूमि में पहुंचे सारे योद्धा तमाम

भाई पर भाई टूट रहे थे

तो वही बाणो की वर्षा हो रहे थे

बाणो की शैया लेट पड़े भीष्म थे

कई योद्धा समेत गुरु द्रोण स्वर्ग सिधार चुके थे

रह गए थे दुर्योधन कर्ण तब अकेले

जहां नियति ने ऐसा खेल रचा

अधर्म का घड़ा फुट पड़ा

ब्राह्मण का श्राप पूर्ण हुआ

शेष समर में युद्ध होना था बाकी

तभी रथ का पहिया अटक पड़ा

और भूल गया सारी ब्रह्मास्त्र ज्ञान

उस पल तब श्रीकृष्ण थे बोले

हे गंडवी उठाओ तीर धनुष बाण

करो प्रहार कर्ण प्रहार

कर दो यही खत्म किस्सा तमाम

जहां हुये वीरगति को जेष्ठ कुँती महान

ऐसे महारथी कर्ण को

नमन करे या ये वीर संसार।

By- ठाकुर आशुतोष सिंह

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Conclusion:- महाभारतके सबसे अच्छे औऱ श्रेष्ठ धनुर्धर में से एक कुंती पुत्र कर्ण के सम्पूर्ण जीवन पर यह हिंदी कविता आपको कैसा लगा, क्या यह Hindi Poem on Karna जो poem on karna’s life in hindi  आपके लिए पर्याप्त है. और अगर है तो आप हमें अपने विचार कमेंट कर बताएं। हम आपके हर एक प्रश्न का उत्तर देने के लिए तैयार है.

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