दुनिया के वैज्ञानिकों ने एक बार फिर माना भगवान शिव इस ब्रह्मांड के सबसे बड़ा वैज्ञानिक

भगवान शिव सभी सनातन धर्म मानने वाले के देवता हैं . हिंदू धर्म के अनुसार भगवान शंकर को सम्पूर्ण ब्रह्मंड का जनक माना  गया है, भगवान  भोलेनाथ  को सारे ब्रह्मांड में जीवन का आधार  माना गया है. इस संसार में मौजूद हर एक  चीज की उतपति वं उसका विनाश भगवान शंकर के अधीन है. भगवान भोलेनाथ में सारी ब्रह्माण्ड  का हर कण- कण समाहित है. चाहे वह जल, वायु, अग्नि , पृथ्वी, अंतरिक्ष हो या ऊर्जा, इन प्रकार के सभी का एकमात्र स्त्रोत है .औऱ वो है भगवान भोलेनाथ

इस बात को लेकर  सारी दुनिया  के वैज्ञानिक ने कई बार रिषर्च किया, और अपनी मत रखी। औऱ आज भी दुनिया के अनेको  वैज्ञानिक अभी हिंदू धर्म से जुडी ग्रन्थ वेद पुराण औऱ शिव प्रतिमा तथा शिवलिंग पर अपनी शोध कर रहे हैं। आज ऐसी ही धर्म और विज्ञान से जुडी हुई एक वैज्ञानिक रिषर्चर को बताने जा रहा हूँ।

दुनिया के वैज्ञानिकों ने एक बार फिर माना भगवान शिव (shiva) इस ब्रह्मांड के सबसे बड़ा वैज्ञानिक Scientist.


दुनिया के सबसे बड़ा और पहला वैज्ञानिक हैं भगवान शिव Lord Shiva is the world’s biggest and first scientist

 आधुनिक युग  में दुनिया में   जितने भी वैज्ञानिक हैं, उनमें अत्यधिक वैज्ञानिक नास्तिक विचारधारा वाले हैं.ऐसे लोग विज्ञान के सामने   धर्म को कम कर आंकते हैं.लेकिन अब यह बदलाव धीरे धीरे  आ रहा है, जिसका मुख्य कारण है धर्म पर लेकर हुई कई  बड़ी  रिषर्चर ।ऐसे ही एक रिषर्चर भारत के IIT आइआइटी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बम्बई में हुई,जो मुख्य रूप से भगवान शिव वं डीएनए पर आधरित रिषर्चर है।

आईआईटी बम्बई में हो रहे हिंदू धर्म के वेद पुराण  रिषर्चर में जेनेटिक्स डॉ एसबी  काले के निर्त्तित्व में हो रहे हैं हिन्दू धर्म के वेद पुराण औऱ भगवान शिव पर हो रहे रिषर्चर पर उन्होंने कहा है कि वेद पुराण में लिखी हर बात पूर्ण सत्य है.

वैज्ञानिक का मानना है –कि भगवान शंकर दुनिया के सबसे बड़ा वैज्ञानिक वँ सबसे पहला वैज्ञानिक हैं। हुये इस रिषर्चर के आधार पर  कहना है कि  आज की  आधुनिक वैज्ञानिक भगवान शंकर के द्वारा किये गये कार्य, शोध ओर खोज से अभी काफी पीछे हैं .उनका यह भी मानना है कि दुनिया में जितने भी खोज हो रही हैं .

उनका सीधा सम्भध हिंदू धार्मिक ग्रन्थ वेद पुराण से ही है. इसके बावजूद भी दुनिया के वैज्ञानिक धर्म का श्रेय नही देना चाहते है उनका यह भी कहना है कि देवताओं द्वारा खोज की गई सम्मान की बराबरी आज के  आधुनिक  विज्ञान नही कर पा रहे हैं. आधुनिक वैज्ञानिक कुछ नया नही खोज रहे बल्कि हमारे देवताओं  औऱ  ऋषि मुनियों  द्वारा खोजी हुई  चीजो को अपना नाम औऱ नया रूप दे रहे हैं।

डीएनए का प्रथम उल्लेख वेदों में  The first mention of DNA in the Vedas

भारतिय प्रदौगिक संस्थान बम्बई द्वारा यहां कई सारे हिंदू धर्म पर रिसर्च चल रहे है, जिनमें शिव को ही डीएनए का पहला स्त्रोत उन्हों ने बताया ।  जिसे साबित करने के लिए जेनेटिक्स डॉ एसबी काले ने वेदों में उल्लेखित एक सूत्र को बताया हैं-

उनका  मानना है,, कि डीएनए का पहला उल्लेख वेदों में मिलता है जिसको साबित करने के लिए डॉ ने एक वैदिक सूत्र का उदाहरण दिया है-

असिपिंडाच च आ मातुरसगोत्राच या पितुः।

सा प्रस्ताता आ द्विजातिनामम दार कर्मणि मुथैनी च।।

और इस वैदिक सूत्र के जरिये अनुवांशिक सिद्धान्तों को साबित कर रहे हैं. और यह सूत्र जो कि वैदिक हैं, कहते है ,कि ये सूत्र इस बात को सिद्ध करता है कि भगवान गणेश के सर पर हाथी का सिर स्थापित करना जेनेटिक्स का प्रथम उदाहरण हो सकता है . जेनेटिक्स को लेकर जो शोध  चल रहे हैं उनमें मानव अंग प्रत्यारोपण  से लेकर  अमरत्व तक इसमें सब  समाहित है.

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वैज्ञानिकों का मानना है. कि बस कुछ दिनों की बात है- आज के आधुनिक वैज्ञानिक अमरत्व  के फार्मूले  को  खोजने में काफी हद तक सफल हो सकते हैं. उन्होंने यह बताया कि सेंटरकार सैल्युर एंड मटीक्यूलर बायोलॉजी यानी कोशिकीय आण्विक जीव विज्ञान केंद्र हैदराबाद के निदेशक डॉ सुमन ठाकुर  इस सम्भध मे  एक एक सिद्धान तक दे चुके हैं .

उनके अनुसार तो प्राचीन  भारतीय  विज्ञान और आधुनिक विज्ञान के कई सिद्धांत विवरण हैं. लेकिन उनको आधुनिक विज्ञान के साथ उनके सम्भध को प्रमाणित करने की अब उन्हें आवश्यकता है.

अमेरिकी वैज्ञानिक भी जुटे हैं इससे सम्भधित शोध में-  American scientists are also engaged in research related to this-

इस डीएनए सम्बंधित शोध जो अमेरिका में भी चल रहे हैं. उनमें अमेरिकी जेनेटिक्स डॉ फ़्रेंच पैन्टर जेनेटिक्स साइट पर काम कर रहे हैं उनका कहना है कि 2026 तक इस विषय पर काम सम्भव हो सकता है जिसमें मानव जीवन की लम्बे समय तक जीवित रखने औऱ नवजवान बनाये रखने तक शामिल है.

भगवान शिव जो वर्षो पहले कर चुके हैं उस आज के आधुनिक विज्ञान अभी खोज रहे हैं

भगवान शिव जो वर्षो पहले कर चुके हैं उस आज के आधुनिक विज्ञान अभी खोज रहे हैं


वैज्ञानिक यह मानते हैं कि भगवान शंकर अजर हैं अमर हैं अविनाशी हैं आदि हैं अनन्ता  हैं शून्य हैं  संसार हैं  लेकिन आज के आधुनिक विज्ञान इस  विषय का आज तक पता न लगा सकी आखिर ऐसा कैसे  औऱ क्यों,बल्कि आज के विज्ञान आज भी मानव जीवन औऱ  लम्बे कैसे किया जाए इस विषय पर ही शोध कार्य कर रही हैं ।

भगवान शंकर ने भगवान गणेश के धड़ पर हाथी का सिर आज से  लाखों वर्ष पूर्व ही स्थापित कर भगवान गणेशजी को जीवित कर दिया था और यह बता दिया था कि इस दुनिया में कोई भी चीज असम्भव नही है जिसे आज विज्ञान के भाषा में अंग प्रत्यारोपण कहते है और आज भी अंग प्रत्यारोपण हमारे वैज्ञनिक डॉ करते हैं,

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पर धड़ से ऊपर सर का नही बल्कि उनके एक छोटे हिस्से का।इस बात से यह साफ जिक्र होता है , कि भगवान शंकर से बड़ा वैज्ञानिक पूरे ब्रह्मांड में अभी कोई नही।इसके अलावा भी भगवान शंकर विष को भी धारण कर चुके है और उसे अपने कंठ तक ही रखा, जो यह अपने आप मे अदभुत हैं जो अब तक दूसरा कोई न कर सका।

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कुछ वैज्ञानिक यह स्वीकार करते हैं कि वेदों में उल्लेखित बातों के अनुसार भगवान शिव के पास कुछ ऐसे तरंग थे जो अत्यंत छोटे वँ हल्के होने के बावजूद भी सम्पूर्ण संसार को समन्वय स्थापित करने की क्षमता रखता था।

अन्तरिक्ष एजेंसी नासा ने भी माना भगवान शिव वैज्ञानिक हैं

दुनिया की सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी नासा भी विगत कई वर्षों से भगवान शिव औऱ शिव से जुड़ी हर एक पहलू पर गहन से रिसर्च कर रही हैं. जिसमें एक रिसर्च उनका पृथ्वी पर पहला DNA को लेकर हैं जो आज भी निरंतर चल रही हैं. NASA ने अपने इस प्रोजेक्ट की शरुआत दरअसल वर्ष 2011 अलास्का में गिरी एक उल्का पिंड गिरने के बाद शुरू की।

औऱ इस प्रोजेक्ट का नाम The Shiva Project था।औऱ NASA द्वारा इस उल्का पिंड के गहन रिसर्च और अध्ययन के बाद यह बताया गया है कि पृथ्वी पर पहला डीएनए एक शिवलिंग से ही आया था. औऱ ये शिवलिंग पृथ्वी पर एक उल्का पिंड के साथ आया था. फिर बाद में नासा के वैज्ञानिकों ने अपने इस अध्ययन से की शिवलिंग के जरिए ही पृथ्वी पर पहली बार डीएनए आया था.इस बात की पुष्टि कर दी। जिससे कि यह और अधिक साबित हो जाता है कि भगवान शिव ही हैं दुनिया के सबसे बड़े वँ पहले वैज्ञानिक-

भगवान शिव वैज्ञानिक दृष्टिकोण : शिवोहम् में समाहित सृष्टि

हम सब जानते हैं कि ब्रह्मा जी इस जगत के सृजनकर्ता हैं. औऱ भगवान विष्णु उस सृजन जगत के पालनहार हैं. लेकिन हमारे वेद म यह बताया गया है कि यह दुनिया  वैज्ञानिक नियमों पर आधारित हैं यानी चलती हैं चाहे वह कुछ भी हो। यहां आपने देखा कि ब्रह्मा व विष्णु भगवान दोनो देव कहि न कही अपने अपने कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्ध हैं. तो वहीं दूसरी तरफ भगवान शिव इन सभी नियमों से परे हैं. औऱ यह भी एक कारण है कि भोलेनाथ में इस संसार को संहार करने का शक्ति हैं तो उस संसार को पुनःनिर्माण करने के भी शक्ति विधमान हैं. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस ब्रह्मांड में एकमात्र शिव हैं जो द्रव्य को ऊर्जा में बदल सकते हैं।

इसी सिद्धांत पर शोध करते हुए एकबार वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंसटीन ने एक सूत्र का प्रतिपादन किया। सूत्र ई = एमसी2 ( Formula – E = MC2 ) का भी यही साबित होता है कि दुनिया में मौजूद द्रव्य को ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है लेकिन उस ऊर्जा को नष्ट नहीं किया जा सकता। औऱ शायद इसलिए दुनिया के आधुनिक  वैज्ञानिक का दृष्टिकोण के अनुसार, जब सृष्टि का संहार होता है तो वह ऊर्जा का रूप ले लेती है और यही ऊर्जा भगवान शिव है.जिसे हम सब ‘शिवोहम्’ कहते है. इस प्रकार से ब्रह्मांड की सारी ऊर्जाओं का परम स्रोत शिव ही हैं.औऱ इससे भी यही साबित होता है कि भगवान शिव ही दुनिया के सबसे बड़ा वैज्ञानिक हैं


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